तब मैं यही कोई सातेक बरस की थी, जब यहां आई. चारों ओर ऐसी चिकनी पत्तियों वाले पेड़ मानो मोम घिसी हो, ऐसी नर्म दूब कि चलते झिझक होती थी. लगा मानो अपने गांव में हूं. खेलने के लिए संगी-साथियों को टेर लगाती हुई- किसी भी वक्त पीछे से कोई जानी-पहचानी आवाज चौंका देगी.
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