"मेरे और मेरे दोस्तों की आंखों में इशारा हुआ और कुछ ही मिनटों में हम कोठी के पीछे की दीवार को चढ़कर अमरूद के पेड़ पर पहुंच चुके थे. पेड़ की डाली से पके अमरूद तोड़े और खाए जा रहे हैं और साथ में गप्पबाजी चल रही थी"
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