फ़िल्म में एक डायलॉग है, “अपने हिस्से का दर्द सबको झेलना पड़ता है उसमें ख़लल मत डालो.” कोई ये क्यों नहीं बताता अपने हिस्से की खुशी, अपने हिस्से का प्यार सबको लेना पड़ता है उसे भी मत छीनो. ये जितने लोग ललाहोट हुए जा रहे हैं कबीर और उसके इश्क़ पर, वो दरअसल अपने नाकाम इश्क़, अपनी दबी हुई ख्वाहिशों की झलक देख रहे हैं उसमें.
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