पंडित हरिप्रसाद जी के पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन बचपन में एक कीर्तन ने हरिप्रसाद के मन पर इतना गहरा असर किया कि उन्होंने सबकुछ छोड़कर अपनी राह तय कर ली.
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