उन्होंने फिल्मों से हट कर भी अपनी शायरी का सिलसिला कभी टूटने नहीं दिया. 'रश्के-कमर' उनकी ऐसी ही गैरफिल्मी गजलों का संग्रह है. उनके अंदर के शायर ने जब-जब अंगड़ाई ली, ग़ज़ल वजूद में आई
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