जैसे बिजली कौंधती है, ठीक ऐसी ही हैं सबीर हका (Sabeer Haka) की कविताएं (Poems). वह सैंकड़ों किताबों के बीच पड़े रहने वाले कवि हैं. न्यूज18 अपने स्पेशल पॉडकास्ट में ईरान में 1986 में जन्मे सबीर हका की कुछ कविताएं लेकर आया है.
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