कभी-कभी कवि कुछ ऐसा रच जाता है जो न कभी चुकता है... और न कभी बीतता है. समय और कालखंड के फरेब से इतर, वह रचना, आंखों के सामने हमेशा हरी ही रहती है... मैं आज जिस कविता के संदर्भ में यह बात कह रही हूं, उसे हममें से कईयों ...
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