धूमिल को यथार्थवादी कवि माना जाता है. उनकी कविताओं में भरपूर तल्खी है. व्यवस्था और समाज के प्रति विद्रोह है. लेकिन यह तल्खी हो या विद्रोह - कहीं से भी आसमानी या हवा-हवाई नहीं हैं.
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