संतोष साह ने बताया कि सीतामढ़ी में भी छोले-भटूरे की दुकान चलाते थे. लेकिन वहां कमाई नहीं हो पाती थी. इसलिए जमुई चले आए. उन्होंने बताया कि कानपुर में रहकर छोले-भटूरे बनाना सीख कर आए हैं.
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